________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[307 है। ज्ञान, निश्चय-व्यवहार का विवेक करता है, इसलिए वह सम्यक् है (समीचीन है) और दृष्टि, व्यवहार के लक्ष्य को छोड़कर निश्चय को स्वीकार करे तो सम्यक् है। सम्यग्दर्शन का विषय क्या है ? और मोक्ष का परमार्थ कारण कौन है ? :
सम्यग्दर्शन के विषय में मोक्षपर्याय और द्रव्य, इसमें भेद नहीं है; द्रव्य ही परिपूर्ण है, वह सम्यग्दर्शन को मान्य है। बन्ध-मोक्ष भी सम्यग्दर्शन को मान्य नहीं; बन्ध-मोक्ष की पर्याय, साधकदशा का भङ्ग-भेद, इन सभी को सम्यग्ज्ञान जानता है।
सम्यग्दर्शन का विषय परिपूर्ण द्रव्य है, वही मोक्ष का परमार्थकारण है। पञ्च महाव्रतादि को अथवा विकल्प को मोक्ष का कारण कहना, वह स्थूल व्यवहार है और सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्ररूप साधक अवस्था को मोक्ष का कारण कहना भी व्यवहार है, क्योंकि उस साधक अवस्था का भी जब अभाव होता है, तब मोक्षदशा प्रगट होती है अर्थात् वह अभावरूप कारण है; इसलिए व्यवहार है।
त्रिकाल अखण्ड वस्तु है, मोक्ष का निश्चय कारण है, किन्तु परमार्थ से तो वस्तु में कारण-कार्य का भेद भी नहीं है, कार्यकारण का भेद भी व्यवहार है। एक अखण्ड वस्तु में काय-कारण के भेद के विचार से विकल्प होता है; इसलिए वह भी व्यवहार है, तथापि व्यवहार में भी कार्य-कारण के भेद हैं अवश्य । यदि कार्यकारण भेद सर्वथा न हों तो मोक्षदशा को प्रगट करने के लिये भी नहीं कहा जा सकता, इसलिए अवस्था में साधक-साध्य का भेद
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.