SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 292] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 की अपेक्षा आ जाती है। इसी प्रकार छहों द्रव्यों के सम्बन्ध में परस्पर समझ लेना चाहिए। एक आत्मद्रव्य का निर्णय करने पर छहों द्रव्य ज्ञात हो जाते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि यह ज्ञान की विशालता है और ज्ञान का स्वभाव सर्वद्रव्यों को जान लेना है। एक द्रव्य के सिद्ध करने पर छहों द्रव्य सिद्ध हो जाते हैं, इसमें द्रव्य की पराधीनता नहीं है, किन्तु ज्ञान की महिमा है। जो पदार्थ है, वह ज्ञान में अवश्य होता है, जितना पूर्णज्ञान में ज्ञात होता है, उसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी इस जगत में नहीं है। पूर्णज्ञान में छहों द्रव्य ज्ञात हुए हैं, उनसे अधिक अन्य कुछ नहीं है। कर्मों के आधार से छह द्रव्यों की सिद्धि : कर्म, पुद्गल की अवस्था हैं। वे जीव के विकारीभाव के निमित्त से रह रहे हैं। कुछ कर्म, बन्धरूप में स्थित हुए, तब उसमें अधर्मास्तिकाय का निमित्त है। प्रतिक्षण कर्म उदय में आकर खिर जाते हैं, उनके खिर जाने पर जो क्षेत्रान्तर होता है, उसमें धर्मास्तिकाय का निमित्त है। कर्म की स्थिति के सम्बन्ध में कहा जाता है कि यह सत्तर कोड़ाकोड़ी का कर्म है अथवा अन्तमुहूंत का कर्म है, उसमें कालद्रव्य की अपेक्षा है; अनेक कर्म-परमाणुओं के एक क्षेत्र में रहने में आकाशद्रव्य की अपेक्षा है। इस प्रकार छह द्रव्य सिद्ध हुए। द्रव्यों की स्वतन्त्रता : उपरोक्त कथन से यह सिद्ध होता है कि जीवद्रव्य और पुद्गलद्रव्य (कर्म) दोनों बिलकुल भिन्न वस्तुएँ हैं, यह दोनों अपने आप में स्वतन्त्र हैं; कोई एक-दूसरे का कुछ भी नहीं करता। यदि जीव और कर्म एकत्रित हो जायें तो इस जगत Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy