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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [293 में छह द्रव्य ही नहीं रह सकेंगे। जीव और कर्म सदा भिन्न ही हैं। द्रव्यों का स्वभाव अनादि-अनन्त स्थिर रहते हुए भी प्रतिसमय बदलने का है। समस्त द्रव्य अपनी शक्ति से स्वतन्त्रतया अनादि-अनन्त स्थिर रहते हुए भी ही अपनी पर्याय को बदलते हैं। जीव की पर्याय को जीव बदलते हैं और पुद्गल की पर्याय को पुद्गल बदलते हैं। जीव न तो पुद्गल का कुछ करते हैं और न पुद्गल, जीव का ही कुछ करते हैं। उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य : द्रव्य का कोई कर्ता नहीं है। यदि कोई कर्ता है तो उसने द्रव्य को कैसे बनाया? किसने बनाया? वह स्वयं किसका कर्ता बना? जगत में छह द्रव्य अपने स्वभाव से ही हैं, उनका कोई कर्ता नहीं है। किसी भी नवीन पदार्थ की उत्पत्ति होती ही नहीं है। किसी भी प्रयोग के द्वारा नये जीव की अथवा नये परमाणु की उत्पत्ति नहीं हो सकती। जो पदार्थ होता है, वही रूपान्तरित होता है। जो द्रव्य है, वह कभी नष्ट नहीं होता और जो द्रव्य नहीं है, वह कभी उत्पन्न नहीं होता। हाँ! जो द्रव्य है, वह प्रतिक्षण अपनी पर्याय को बदलता रहता है, - ऐसा नियम है। इस सिद्धान्त को उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य, अर्थात् नित्य स्थिर रहकर बदलना (Permanency with a change) कहते हैं। क्योंकि द्रव्य का कोई बनानेवाला नहीं है; इसलिए कोई सातवाँ द्रव्य नहीं हो सकता और किसी द्रव्य को कोई नाश करनेवाला नहीं है; इसलिए छह द्रव्यों में से कोई भी कम नहीं हो सकता; शाश्वतरूप से छह ही द्रव्य हैं । सर्वज्ञ भगवान ने अपने सम्पूर्ण ज्ञान के द्वारा छह द्रव्यों को जाना है और उन्हीं को अपने उपदेश में दिव्यवाणी के द्वारा कहा है। सर्वज्ञ वीतराग Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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