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सम्यग्दर्शन : भाग-1] रहने में अधर्मद्रव्य निमित्तरूप है। पहले टोपी सीधी थी, अब घड़ीवाली है और अब वह अमुक समय तक रहेगी, जहाँ ऐसा जाना वहाँ 'काल' सिद्ध हो गया। भूत, भविष्य, वर्तमान अथवा नया -पुराना, दिन-घण्टे इत्यादि जो भी भेद होते हैं, वे सब किसी एक मूलवस्तु के बिना नहीं हो सकते हैं। उपर्युक्त सभी भेद काल द्रव्य के हैं। यदि कालद्रव्य न हो तो नया-पुराना, पहले-पीछे इत्यादि कोई भी प्रवृत्ति नहीं हो सकती, इसी से कालद्रव्य सिद्ध हो गया।
इन छह द्रव्यों में से यदि एक भी द्रव्य न हो तो जगत-व्यवहार नहीं चल सकता। यदि पुद्गल नहीं हो तो टोपी नहीं हो सकती; यदि जीव न हो तो टोपी का अस्तित्व कौन निश्चित करेगा? यदि आकाश न हो तो यह नहीं जाना जा सकता कि टोपी कहाँ है? यदि धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य न हो तो टोपी में होनेवाला परिवर्तन (क्षेत्रान्तर और स्थिरता) नहीं जाना जा सकता। यदि कालद्रव्य न हो तो 'पहले' जो टोपी सीधी थी, वही 'अब' घड़ीवाली है - इस प्रकार पहले टोपी का अस्तित्व निश्चित नहीं हो सकता; इसलिए टोपी को सिद्ध करने के लिये छहों द्रव्यों को स्वीकार करना होता है। विश्व की किसी भी एक वस्तु को स्वीकार करने पर व्यक्तरूप से अथवा अव्यक्तरूप से छहों द्रव्यों की स्वीकृति हो जाती है। मानव-शरीर के द्वारा छहों द्रव्यों की सिद्धि :
यह दृष्टिगोचर होनेवाला शरीर, पुद्गलनिर्मित है और इस शरीर में जीव रहता है। जीव और पुद्गल एक ही आकाश-स्थल में रहते हैं, तथापि दोनों भिन्न हैं । जीव का ज्ञातास्वभाव है और
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