SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 274] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 शुद्धता प्रगट होती है। शुद्धता की प्रथम सीढ़ी शुद्धात्मा की प्रतीति, अर्थात् सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन के बाद पुरुषार्थ के द्वारा क्रमश: स्थिरता को बढ़ाकर अन्त में पूर्ण स्थिरता के द्वारा पूर्ण शुद्धता प्रगट करके मुक्त हो जाता है और सिद्धदशा में अक्षय अनन्त आत्मसुख का अनुभव करता है -मिथ्यात्व का त्याग करके सम्यग्दर्शन प्रगट करने का ही यह फल है। उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य : प्रश्न – द्रव्य त्रिकाल स्थिर रहनेवाला है, उसका कभी नाश नहीं होता और वह कभी भी दूसरे द्रव्य में नहीं मिल जाता, इसका क्या आधार है ? इसका कैसे विश्वास किया जाये? हम देखते हैं कि दूध इत्यादि अनेक वस्तुओं का नाश हो जाता है अथवा दूध (वस्तु) मिटकर दही बन जाता है, तब फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य में नहीं मिलता? उत्तर – वस्तुस्वरूप का ऐसा सिद्धानत है कि जो वस्तु है, उसका कभी भी नाश नहीं होता और जो वस्तु नहीं है, उसकी उत्पत्ति नहीं होती तथा जो वस्तु है, उसमें रूपान्तर होता रहता है अर्थात् स्थिर रहकर बदला (Parmanency with a change) वस्तु का स्वरूप है। शास्त्रीय भाषामें इस नियम को 'उत्पादव्यय-ध्रौव्य-युक्तं सत्' के रूप में कहा गया है। उत्पाद-व्यय का अर्थ है, अवस्था (पर्याय) का रूपान्तर और ध्रौव्य का अर्थ है, वस्तु का स्थिर रहना – यह द्रव्य का स्वभाव है। अस्ति-नास्ति : द्रव्य और पर्याय के स्वरूप में यह अन्तर है कि द्रव्य त्रिकाल स्थिर है, वह बदलता नहीं है; किन्तु पर्याय क्षणिक है, वह प्रतिक्षण Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy