SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [ 275 बदलती रहती है। पर्याय के बदलने पर भी द्रव्य का नाश नहीं होता। द्रव्य अपने स्वरूप में त्रिकाल स्थिर है, इसलिए वह दूसरे में कभी नहीं मिलता। इसे अनेकान्तस्वरूप कहा जाता है अर्थात् वस्तु अपने स्वरूप से है और दूसरे स्वरूप की अपेक्षा से नहीं है। जैसे लोहा लोहे के स्वरूप की अपेक्षा से है; किन्तु वह लकड़ी के स्वरूप की अपेक्षा से नहीं है । जीव जीवस्वरूप से है; किन्तु वह जड़स्वरूप से नहीं है। ऐसा स्वभाव है, इसलिए कोई वस्तु अन्य वस्तु में नहीं मिल जाती; किन्तु सभी वस्तुएँ अपनेअपने स्वरूप से भिन्न ही रहती हैं । नित्य-अनित्य : जीव अपने वस्तुस्वरूप से स्थिर रहकर पर्याय की अपेक्षा से बदलता रहता है; किन्तु जीव जीवरूप में ही बदलता है । जीव की अवस्था बदलती है, इसलिए संसारदशा का नाश करके सिद्धदशा हो सकती है। अज्ञानदशा का नाश करके ज्ञानदशा हो सकती है और जीव नित्य है, इसलिए संसारदशा का नाश हो जाने पर भी, वह मोक्षदशारूप में स्थिर बना रहता है । इस प्रकार वस्तु की अपेक्षा से नित्य और पर्याय की अपेक्षा से अनित्य समझना चाहिए। परमाणु में भी उसकी अवस्था बदलती है, किन्तु किसी वस्तु का नाश नहीं होता। दूध इत्यादि का नाश होता हुआ दिखता है, किन्तु वास्तव में वह वस्तु का नाश नहीं है। दूध कहीं मूलवस्तु नहीं है, किन्तु वह तो बहुत से परमाणुओं की स्कन्धरूप अवस्था है और वह अवस्था बदलकर अन्य दही इत्यादि अवस्था हो जाती है; किन्तु उसमें परमाणु-वस्तु तो स्थिर बनी ही रहती है और फिर दूध बदलकर दही हो जाता है; इसलिए वस्तु अन्यरूप नहीं हो Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy