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________________ www.vitragvani.com 270] [ सम्यग्दर्शन : भाग-1 ज्ञानियों से शुद्धात्मा की बात सुनकर, विचार के द्वारा निर्णय करना चाहिए। यही मिथ्यात्व को दूर करने का उपाय है। भगवान के उपदेश का सार : उत्तर प्रश्न- भगवान के उपदेश में मुख्यतया क्या कथन होता है ? भगवान स्वयं अपने पुरुषार्थ के द्वारा स्वरूप की सच्ची श्रद्धा और स्थिरता करके पूर्णदशा को प्राप्त हुए हैं, 'इसलिए उनके उपदेश में भी पुरुषार्थ द्वारा आत्मा की सच्ची श्रद्धा और स्थिरता करने की बात मुख्यता से आती है ।' भगवान के उपदेश में नवतत्त्वों का स्वरूप बताया जाता है। यदि कोई 'आत्मा' शुद्ध है, इस प्रकार आत्मा-आत्मा ही कहा करे तो अज्ञानी जीव कुछ भी नहीं समझ सकेंगे; इसलिए यह समझाया जाता है कि आत्मा का शुद्धस्वभाव क्या है ? दुःख का कारण क्या है ? संसार-मार्ग क्या है ? नवतत्त्व क्या हैं? देव, गुरु, शास्त्र क्या हैं ? इत्यादि । किन्तु उसमें आत्मा का स्वरूप समझाने की मुख्यता होती है । नवतत्त्व : आत्मा का स्वभाव तो शुद्ध ही है, किन्तु अवस्था में विकारी और अविकारी भेद हैं। पुण्य-पाप, विकार हैं और उसका फल आस्रव तथा बन्ध है । यह चारों (पुण्य, पाप, आस्रव, बन्ध) जीव के दुःख के कारण हैं; इसलिए वे त्याज्य हैं। - आत्मस्वरूप को यथार्थ समझकर पुण्य-पाप को दूर करके स्थिरता करना, वह संवर, निर्जरा, मोक्ष है । ये तीनों आत्मा के सुख के कारण हैं, इसलिए वे प्रगट करने योग्य हैं। जीव स्वयं ज्ञानमय है, परन्तु ज्ञानरहित अजीव वस्तु के लक्ष्य से भूल करता है; Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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