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________________ www.vitragvani.com [259 सम्यग्दर्शन : भाग-1] किया कि सत्य क्या है; इस प्रकार अपने को जो मन / विचार करने की शक्ति प्राप्त हुई है, उसका सदुपयोग न करके दुरुपयोग ही किया और जिसके फलस्वरूप उसकी विचार-शक्ति का घात हुए बिना नहीं रहता। मन्द कषाय के फलस्वरूप विचार-शक्ति प्राप्तकर लेने पर भी उसका सदुपयोग नहीं करके अनादिकालीन अगृहीत मिथ्यात्व के साथ नया भ्रम उत्पन्न कर लिया और उसे पुष्ट किया, उसके फलस्वरूप जीव को ऐसी हल्की दशा प्राप्त होती है, जहाँ विचार-शक्ति का अभाव है। ___ अपनी विचार-शक्ति को गिरवी रखकर सैनी जीव भी धर्म के नाम पर इस प्रकार अनेक तरह की विपरीत मान्यताओं को पुष्ट किया करते हैं कि यदि हमारे बाप-दादा, कुदेव को मानते हैं तो हम भी उन्हें ही मानेंगे। इस प्रकार अपनी मन की शक्ति का घात करके स्वयं अपने लिये निगोद की तैयारी करते हैं। जैसे निगोदिया जीव को विचार-शक्ति नहीं होती, उसी प्रकार गृहीत मिथ्यात्वी जीव अपनी विचार-शक्ति का दुरुपयोग करके उसका घात करता है और उस निगोद की तैयारी करता है, जहाँ विचार-शक्ति का सर्वथा अभाव है। स्वयं को विपरीत ज्ञान है; इसलिए जिन्हें यथार्थ पूर्णज्ञान हुआ है, ऐसे दिव्य शक्तिवाले सर्वज्ञदेव के पास से सच्चा ज्ञान प्राप्त हो सकता है; किन्तु जीव उन्हें नहीं पहचानता और सर्वज्ञदेव के सम्बन्ध में (अर्थात् सम्पूर्ण सच्चा ज्ञान किये प्राप्त हुआ, इस सम्बन्ध में) मूर्खता धारण करता है और इस प्रकार सच्चे देव के सम्बन्ध में भी अपनी विचार-शक्ति का दिवाला पीटता है, यही देवमूढ़ता है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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