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________________ www.vitragvani.com 254] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 नाम का त्रिकाल गुण है और उसकी विपरीत अवस्था, वह मिथ्यात्व है। जीव स्वयं जैसी विपरीत मान्यता है, वह वैसा ही आचरण करता है; अर्थात् जहाँ जीव की मान्यता में भूल होती है, वहाँ उसका आचरण विपरीत ही होता है। जीव की मान्यता उल्टी हो और आचरण सच्चा हो - ऐसा कभी भी नहीं हो सकता। जहाँ विपरीत मान्यता होती है, वहाँ ज्ञान भी विपरीत ही होता है। 'मिथ्या' का अर्थ है विपरीत, उल्टा अथवा झूठा और 'त्व' अर्थात् उससे युक्त। यह भूल बहुत बड़ी और भयंकर है; क्योंकि जहाँ मिथ्या मान्यता होती है, वहाँ आचरण और ज्ञान भी मिथ्या होते हैं और उस विपरीतता में महान दु:ख होता है। ऐसी मिथ्यात्वरूपी भयंकर भूल क्या है ? इस सम्बन्ध में विचार करते हैं। स्वरूप की मान्यता करनेवाला श्रद्धा नाम का जीव का जो गुण है, उसे स्वयं अपने-आप उल्टा किया है, उसी को मिथ्या मान्यता कहा जाता है। वह अवस्था होने से दूर की जा सकती है। उस भयंकर भूल को कौन दूर कर सकता है ? : वह जीव की अपनी अवस्था है, इसलिए जीव उसे स्वयं दूर कर सकता है। अपने स्वरूप की जो सबसे बड़ी घोरातिघोर भयंकर भूल है, वह कब से चली आ रही है ? ___ हे भाई! क्या वर्तमान में तेरे वह भूल विद्यमान है ? यदि वर्तमान में भूल है तो पहले भी भूल थी और यदि पहले बिल्कुल भूलरहित हो गया होता तो वर्तमान में भूल नहीं होती। पहले पक्की न हटे ऐसी – यथार्थ समझ-मान्यता कर ली हो और वह यदि दूर हो गयी हो तो? इस प्रश्न का समाधान करते हैं - Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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