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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [ 253 अर्थ एक ही है। यह सब मिथ्यात्व का फल है। अपने स्वरूप की अप्रतीतिदशा में इच्छा के बिना जीव का एकसमय भी नहीं जाता, निरन्तर अपने को भूलकर इच्छा होती ही रहती है और वही दुःख है। जीव की बड़ी भयंकर भूल है; इसलिए महान दुःख है अर्थात् जीव के एक के बाद दूसरी इच्छा होती ही रहती है और वह रुकती नहीं है, यही महान दुःख है । उसका कारण मिथ्यात्व-विपरीत मान्यता-महान भूल है। मिथ्यात्व क्या है ? यह अब कहा जाता है। मिथ्यात्व क्या है ? : यदि यह मिथ्यात्व, द्रव्य अथवा गुण हो तो उसे दूर नहीं किया जा सकता, किन्तु यदि वह मिथ्यात्व, पर्याय हो तो पर्याय को बदलकर मिथ्यात्व दूर किया जा सकता है। अब मिथ्यात्व, वह विपरीतता है । विपरीतता कहते ही यह सिद्ध हुआ कि उसे बदलकर सरलता-यथार्थता की जा सकती है । मिथ्यात्व, जीव के किसी एक गुण की विपरीत अवस्था है और चूँकि वह अवस्था है; इसलिए समय-समय पर बदलती है । इसलिए मिथ्यात्व एक समय की अवस्था होने से दूर किया जा सकता है। जीव के किस गुण की विपरीत अवस्था मिथ्यात्व है ? : मैं कौन हूँ? मेरा सच्चा स्वरूप क्या है ? जो यह क्षणिक सुख-दुःख का अनुभव होता है, वह क्या है ? पुण्य-पाप का विकार क्या है ? परवस्तु देहादिक मेरे हैं या नहीं - इस प्रकार स्व-पर की यथार्थ मान्यता करनेवाला जो गुण है, उसकी विपरीतदशा मिथ्यात्व है, अर्थात् आत्मा में मान्यता (श्रद्धा) Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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