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[ सम्यग्दर्शन : भाग-1
लिए होता है; किन्तु यह बहुत बड़ी भूल है; इसलिए दुःख बड़ा और अनादि काल से है । अब दुःख तो अनादि काल का है और वह अनन्त है; इसलिए यह निश्चय हुआ कि मिथ्यात्व अर्थात् जीवसम्बन्धी विपरीत समझ - भूल सबसे बड़ी और अनन्ती है । यदि भयंकर भूल न होती तो भयंकर दुःख न होता । महान भूल का फल महान दुःख है; इसलिए महान दुःख को दूर करने का सच्चा उपाय महान भूल को दूर करना है । अर्थात् आत्मा की सच्ची समझ ही दुःख मिटाने का उपाय है।
दुःख का होना निश्चय करें' :
कोई कहता है कि जीव के दुःख क्यों कहा जाए ? रुपयापैसा हो, खाने-पीने की सुविधा हो और जो चाहिए वह मिल जाता हो फिर भी उसे दुःखी कैसे कहा जाए ?
उत्तर
भाई ! तुझे परवस्तु को प्राप्त करने की इच्छा होती है या नहीं ? तेरे अन्तरङ्ग से यह इच्छा होती है या नहीं कि मेरे पास बाह्य सामग्री रुपया-पैसा इत्यादि हो तो ठीक और यह सब हो तो मुझे सुख हो; इस प्रकार की इच्छा होती है, यही दुःख है; क्योंकि यदि तुझे दुःख न हो तो परवस्तु प्राप्त करके सुख पाने की इच्छा न हो ।
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यहाँ अज्ञानपूर्वक इच्छा की बात है क्योंकि अज्ञान - भूल के दूर होने पर, अस्थिरता के कारण होनेवाली जो इच्छा है, उसका दुःख अल्प है। मूल दुःख अज्ञानपूर्वक इच्छा का ही है । इच्छा कहो, दुःख कहो, आकुलता कहो अथवा परेशानी कहो
सबका
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