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(धर्म की पहली भूमिका (भाग 1)) मिथ्यात्व का अर्थ :___ पहले हम यह देख लें कि मिथ्यात्व का अर्थ क्या है और मिथ्यात्व किसे कहते हैं एवं उसका वास्तविक लक्षण क्या है?
मिथ्यात्व में दो शब्द हैं - 1. मिथ्या और 2. त्व। मिथ्या अर्थात् असत् और त्व अर्थात् पन। इसप्रकार खोटापन, विपरीतता, असत्यता इत्यादि अनेक अर्थ होते हैं। ___ यहाँ पर यह देखना है कि जीव में, निज में मिथ्यात्व या विपरीतता क्या है ? क्योंकि जीव अनादिकाल से दुःख भोग रहा है
और वह उसे अनादिकाल से मिटाने का प्रयत्न भी करता है; किन्तु वह न तो मिटता है और न कम होता है। दुःख समय-समय पर अनन्त होता है और वह अनेकप्रकार का है। पूर्व-पुण्य के योग से किसी एक सामग्री का संयोग होने पर उसे ऐसा लगता है कि मानों एक प्रकार का दुःख कम हो गया है; किन्तु यदि वास्तव में देखा जाये तो सचमुच में उसका दु:ख कम नहीं हुआ है, क्योंकि जहाँ एक प्रकार का दुःख गया नहीं कि दूसरा दुःख आ उपस्थित होता है।
मूलभूत भूल के बिना दुःख नहीं होता। दुःख है; इसलिए भूल भी है ही; और वह भूल ही इस महादुःख का कारण है। यदि वह भूल छोटी हो तो दुःख कम और अल्प काल के
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