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________________ www.vitragvani.com 250] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 द्वारा द्रव्यदृष्टि करनी चाहिए, यही प्रयोजनभूत है। द्रव्यदृष्टि कहो या शुद्धनय का अवलम्बन कहो, निश्चयनय का आश्रय कहो या परमार्थ कहो, -सब एक ही है। उसका जन्म सफल है मुक्त्वा कायविकारं यः शुद्धात्मानं मुहुर्मुहुः। संभावयति तस्यैव सफलं जन्म संसृतौ ॥ (नियमसार कलश ९३) काय विकार को छोड़कर जो बारम्बार शुद्धात्मा की सम्भावना (सम्यक्भावना) करता है, उसका ही जन्म, संसार में सफल है। पहले तो काया से भिन्न चिदानन्दस्वरूप का भान किया है, तदुपरान्त काया से उपेक्षित होकर बारम्बार अन्तर में शुद्धात्मा के सन्मुख होकर उसकी भावना भाता है, उस धर्मात्मा का अवतार सफल है, उसने जन्मकर आत्मा में मोक्ष की ध्वनि प्रगटायी, आत्मा में मोक्ष की झंकार प्रगट की... इसलिए उसका जन्म सफल है। अज्ञानरूप से तो अनन्त अवतार किये, वे सब निष्फल गये, उनमें आत्मा का कुछ हित नहीं हुआ। चिदानन्दस्वरूप का भान करके जिस अवतार में आत्मा का हित हुआ, वह अवतार सफल है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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