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________________ www.vitragvani.com 224] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 ___ आत्मा के स्वभाव में व्यवहार का, राग का, विकल्प का निषेध है | अभाव है, तथापि जो व्यवहार को, राग को या विकल्प को आदरणीय मानता है, उसे स्वभाव की रुचि नहीं है और इसलिए वह जीव, व्यवहार का निषेध करके कभी भी स्वभावोन्मुख नहीं हो सकेगा। सिद्ध भगवान के रागादि का सर्वथा अभाव ही हो गया है; इसलिए उन्हें अब व्यवहार का निषेध करके स्वभावोन्मुख होना शेष नहीं रह गया है, किन्तु साधक जीव के पर्याय में रागादि विकल्प और व्यवहार विद्यमान है; इसलिए उसे उस व्यवहार का निषेध करके स्वभावोन्मुख होना है। __ हे जीव! यदि स्वभाव में सब पुण्य-पाप इत्यादि का निषेध ही है तो फिर मोक्षार्थी के ऐसा आलम्बन नहीं हो सकता कि अभी कोई भी व्यवहार या शास्त्राभ्यास इत्यादि कर लूँ, फिर उसका निषेध कर लूँगा।' इसलिए तू पराश्रित व्यवहार का अवलम्बन छोड़कर सीधा चैतन्य को स्पर्श कर और किसी भी वृत्ति के आलम्बन की शल्य में न अटक। सिद्ध भगवान की भाँति तेरे स्वभाव में मात्र चैतन्य है, उस चैतन्यस्वभाव को ही स्पष्टतया स्वीकार कर, उसमें कहीं रागादि दिखायी ही नहीं देते; जबकि रागादिक हैं ही नहीं, तब फिर उनके निषेध का विकल्प कैसा? स्वभाव की श्रद्धा को किसी भी विकल्प का अवलम्बन नहीं होता। जिस स्वभाव में राग नहीं है, उसकी श्रद्धा भी राग से नहीं होती। इस प्रकार सिद्ध के समान अपने आत्मा के ध्यान के द्वारा चैतन्य पृथक् अनुभव में आता है और वहाँ सर्व व्यवहार का निषेध स्वयंमेव हो जाता है। यही साधकदशा का स्वरूप है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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