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________________ www.vitragvani.com ( द्रव्यदृष्टि की महिमा ) जो कोई जीव एकबार भी द्रव्यदृष्टि धारण कर लेता है, उसे अवश्य मोक्ष की प्राप्ति होती है। द्रव्यदृष्टि में भव नहीं :__ आत्मा वस्तु है। वस्तु का मतलब है - सामर्थ्य से परिपूर्ण, त्रिकाल में एकरूप अवस्थित रहनेवाला द्रव्य। इस द्रव्य का वर्तमान तो सर्वदा उपस्थित है ही।अब यदि वह वर्तमान किसी निमित्ताधीन है तो समझ लो कि विकार है, अर्थात् संसार है और यदि वह वर्तमान, स्वाश्रय से स्थित है, तो द्रव्य में विकार न होने से पर्याय में भी विकार नहीं है, अर्थात् वही मोक्ष है। दृष्टि ने जिस द्रव्य का लक्ष्य किया है, उस द्रव्य में भव या भव का भाव नहीं है; इसलिए उस द्रव्य को लक्षित करनेवाली अवस्था में भी भव या भव का भाव नहीं है। यदि आत्मा अपनी वर्तमान अवस्था को 'स्वलक्ष्य' से रहित धारण कर रहा है तो वह विकारी है, किन्तु फिर भी वह विकार, मात्र एक समय (क्षण) पर्यन्त ही रहनेवाला है; नित्यद्रव्य में वह विकार नहीं है। इसलिए नित्य-त्रिकालवर्ती द्रव्य को लक्ष्य करके जो वर्तमान अवस्था होती है, उसमें न्यूनता या विकार नहीं है और जहाँ न्यूनता या विकार नहीं, वहाँ भव का भाव नहीं है; और भव का भाव नहीं, इसलिए भव भी नहीं है। इसलिए द्रव्यस्वभाव में Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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