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________________ www.vitragvani.com 6] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 लिए अनुभव करे, ( उसमें लीन हो जाय), परीषहों के आने पर भी न डिगे तो घातिया कर्मों का नाश करके केवलज्ञान को प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त हो जाए। आत्मानुभव की ऐसी महिमा है तो मिथ्यात्व का नाश करके सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का होना सुलभ ही है। इसलिए श्री परमगुरुओं ने यही उपदेश प्रधानता से दिया है।' (श्री समयसार प्रवचनों में आत्मा की पहिचान करने के लिये बारम्बार प्ररेणा की गयी है कि-) 1. चैतन्य के विलासरूप आनन्द को जरा पृथक् करके देख, उस आनन्द के भीतर देखने पर तू शरीरादि के मोह को तत्काल छोड़ सकेगा। 'झगिति' अर्थात् झट से छोड़ सकेगा, यह बात सरल है, क्योंकि यह तेरे स्वभाव की बात है। 2. सातवें नरक की अनन्त वेदना में पड़ हुओं ने भी आत्मानुभव प्राप्त किया है, तब यहाँ पर सातवें नरक के बराबर तो पीड़ा नहीं है। मनुष्यभव प्राप्त करके रोना क्या रोया करता है ! अब सत्समागम से आत्मा की पहिचान करके आत्मानुभव कर। (इस प्रकार समयसार प्रवचनों से बारम्बार-हजारों बार आत्मानुभव करने की प्रेरणा की है।) जैन शास्त्रों का ध्येयबिन्दु ही आत्मस्वरूप की पहिचान कराना है। अनुभवप्रकाश ग्रन्थ में आत्मानुभव की प्रेरणा करते हुए कहा है कि कोई यह जाने कि आज के समय में स्वरूप की प्राप्ति कठिन है तो समझना चाहिए कि वह स्वरूप की चाह को मिटानेवाला बहिरात्मा है........ जब वह निठल्ला होता है, तब विकथा करने लगता है। परन्तु तब स्वरूप के परिणाम करे तो Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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