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आत्मस्वरूप की यथार्थ समझ सुलभ है !
अपना आत्मस्वरूप समझना सुगम है; किन्तु अनादि से स्वरूप के अनाभ्यास के कारण कठिन मालूम होता है। यदि यथार्थ रुचिपूर्वक समझना चाहे तो वह सरल है।
चाहे जितना चतुर कारीगर हो, तथापि वह दो घड़ी में मकान तैयार नहीं कर सकता, किन्तु यदि आत्मस्वरूप की पहचान करना चाहे तो वह दो घड़ी में भी हो सकती है। आठ वर्ष का बालक, एक मन का बोझा नहीं उठा सकता, किन्तु यथार्थ समझ के द्वारा आत्मा की प्रतीति करके केवलज्ञान को प्राप्त कर सकता है। आत्मा, परद्रव्य में कोई परिवर्तन नहीं कर सकता, किन्तु स्वद्रव्य में पुरुषार्थ के द्वारा समस्त अज्ञान का नाश करके, सम्यग्ज्ञान को प्रगट करके, केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है। स्व में परिवर्तन करने के लिए आत्मा सम्पूर्ण स्वतन्त्र है, किन्तु पर में कुछ भी करने के लिए आत्मा में किञ्चित्मात्र सामर्थ्य नहीं है।आत्मा में इतना अपार स्वाधीन पुरुषार्थ विद्यमान है कि यदि वह उल्टा चले तो दो घड़ी में सातवें नरक जा सकता है और यदि सीधा चले तो दो घड़ी में केवलज्ञान प्राप्त करके सिद्ध हो सकता है।
परमागम श्री समयसारजी में कहा है कि –'यदि यह आत्मा, अपने शुद्ध आत्मस्वरूप को पुद्गलद्रव्य से भिन्न दो घड़ी के
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