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________________ www.vitragvani.com (सम्यग्दर्शन की रीति) (- प्रवचनसार, गाथा - 80) (1) यह प्रवचनसार की 80वीं गाथा चल रही है। आत्मा में अनादि काल से जो मिथ्यात्वभाव है, अधर्म है, उस मिथ्यात्वभाव को दूर करके सम्यग्दर्शन कैसे प्रगट हो – उसके उपाय का इस गाथा में वर्णन किया है। इस आत्मा का स्वभाव अरहन्त भगवान जैसा ही पुण्य-पापरहित है। आत्मा के स्वभाव से च्युत होकर जो पुण्य-पाप होते हैं, उन्हें अपना स्वरूप मानना, वह मिथ्यात्व है। शरीर-मन-वाणी, आत्मा के आधीन हैं और उनकी क्रिया आत्मा कर सकता है - ऐसा मानना, यह मिथ्यात्व है तथा आत्मा, शरीर -मन-वाणी के आधीन है और उनकी क्रिया से आत्मा को धर्म होता है - ऐसा मानना भी मिथ्यात्व है, भ्रम है और अनन्त संसार में परिभ्रमण का कारण है। उस मिथ्यात्व का नाश किए बिना धर्म नहीं होता। उस मिथ्यात्व को नष्ट करने का उपाय यहाँ बतलाते हैं। ___ (2) जो जीव, भगवान अरहन्त के आत्मा को द्रव्य-गुणपर्यायरूप से बराबर जानते हैं, वे जीव वास्तव में अपने आत्मा को जानते हैं और उनका मिथ्यात्वरूप भ्रम अवश्य ही नाश को प्राप्त होता है तथा शुद्ध सम्यक्त्व प्रगट होता है - यह धर्म का उपाय है। अरहन्त के आत्मा का नित्य एकरूप रहनेवाला स्वभाव कैसा है, उनके ज्ञानादि गुण कैसे है और उनकी रागरहित केवलज्ञान पर्याय कैसी है – उसे जो जानता है, वह जीव, अरहन्त जैसे अपने Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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