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________________ www.vitragvani.com (मिथ्यादृष्टि का वर्णन धरम न जानत बखानत भरमरूप, ठौर ठौर ठानत लड़ाई पच्छपात की। भूल्यो अभिमान मैं न पाँव धरै धरनी मैं, हिरदेमैं करनी विचारे उतपात की। फिरै डाँवाडोलसौ करम के कलोलिनिमैं, ढ रही अवस्था सु बघूलेकैसे पातकी। जाकी छाती ताती कारी कुटिल कुवाती भारी, ऐसौ ब्रह्मघाती है मिथ्याती महापातकी॥ (- कविवर बनारसीदास नाटक-समयसार, मङ्गलाचरण छन्द-9) अर्थ – जो स्वयं किञ्चित्मात्र धर्म को नहीं जानता और धर्मस्वरूप का भ्रमरूप व्याख्यान (वर्णन) करता है, धर्म के नाम पर प्रत्येक प्रसङ्ग पर पक्षपात से लड़ाई किया करता है और जो अभिमान में मस्त होकर भानभूला है और धरती पर पैर नहीं रखता, अर्थात् अपने को महान समझता है, जो प्रति समय अपने हृदय में उत्पाद की करणी का ही विचार करता है, तूफान में पडे हए पत्ते की भाँति जिसकी अवस्था शुभाशुभकर्मों की तरङ्गों में डाँवाडोल हो रही है, कुटिल पाप की अग्नि से जिसका अन्तर तप्त हो रहा है - ऐसा महादुष्ट, कुटिल, अपने आत्मस्वरूप का घात करनेवाला मिथ्यादृष्टि महा पातकी है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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