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सम्यग्दृष्टि का वर्णन) सजन सम्यग्दृष्टि की प्रशंसा करते हुए पण्डित श्री बनारसीदासजी नाटक-समयसार में कहते हैं कि - भेदविज्ञान जग्यौ जिन्हके घट,
सीतल चित्त भयौ जिम चन्दन। केलि करै शिव मारगमें,
जग माँहि जिनेश्वर के लघु नन्दन। सत्यस्वरूप सदा जिन्हकै,
प्रगट्यौ अवदात मिथ्यात-निकंदन। सांतदसा तिन्हींकी पहिचानि,
करै कर जोरि बनारसि वंदन॥
(-नाटक समयसार, मङ्गलाचरण, छन्द-6) अर्थ – जिनके अन्तर में भेदविज्ञान का प्रकाश प्रगट हुआ है, जिनका हृदय चन्दन के समान शीतल हुआ है, जो मोक्षमार्ग में केलिक्रीड़ा करते हैं और इस जगत में जो जिनेश्वर के लघुनन्दन (युवराज) हैं और सम्यग्दर्शन द्वारा जिनके आत्मा में सत्यस्वरूप प्रकाशमान हुआ है, जिन्होंने मिथ्यात्व का निकंदन कर दिया है – ऐसे सम्यग्दृष्टि भव्य आत्मा की शान्ति को देखकर पण्डित बनारसीदासजी उन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं।
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