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________________ www.vitragvani.com 190] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 मिथ्यात्वरूपी महान पाप के रहते हुए, अनन्त व्रत करे, तप करे, देवदर्शन, भक्ति, पूजा-इत्यादि सबकुछ करे और देशसेवा के भाव करे, तथापि उसका संसार किञ्चित्मात्र भी दूर नहीं होता। एक सम्यग्दर्शन (आत्मस्वरूप की सच्ची पहिचान) के उपाय के अतिरिक्त अन्य जो अनन्त उपाय हैं, वे सब उपाय करने पर भी, मिथ्यात्व को दूर किए बिना धर्म का अंश भी प्रगट नहीं होता और एक भी जन्म-मरण दूर नहीं होता; इसलिए यथार्थ तत्त्वविचाररूप उपाय के द्वारा सर्व प्रथम मिथ्यात्व का नाश करके, शीघ्र ही सम्यक्त्व को प्राप्त कर लेना आवश्यक है। सम्यक्त्व का उपाय ही सर्व प्रथम कर्तव्य है। यह विशेष ध्यान में रखना चाहिए कि कोई भी शुभभाव की क्रिया अथवा व्रत, तप, इत्यादि सम्यक्त्व को प्रगट करने का उपाय नहीं है, किन्तु अपने आत्मस्वरूप का ज्ञान और अपने आत्मा की रुचि तथा लक्ष्यपूर्वक सत्समागम ही उसका उपाय है; दूसरा कोई उपाय नहीं है। मैं पर का कुछ कर सकता हूँ और पर मेरा कर सकता है तथा पुण्य के करते-करते धर्म होता है; इस प्रकार की मिथ्यात्व की विपरीतमान्यता में एक क्षणभर में अनन्त हिंसा है, अनन्त असत्य है, अनन्त चोरी है, अनन्त अब्रह्मचर्य (व्यभिचार) है और अनन्त परिग्रह है। एक मिथ्यात्व में एक ही साथ जगत् के अनन्त पापों का सेवन है।' __ 1. मैं परद्रव्य का कुछ कर सकता हूँ - इसका अर्थ यह है कि जगत् में जो अनन्त परद्रव्य हैं, उन सबको पराधीन माना है; और पर को मेरा कुछ कर सकता है। इसका अर्थ यह है कि स्वभाव को पराधीन माना है। इस मान्यता में जगत् के अनन्त पदार्थों की Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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