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________________ www.vitragvani.com (सम्यग्दर्शन-धर्म) सम्यग्दर्शन क्या है और उसका अवलम्बन क्या है ? सम्यग्दर्शन अपने आत्मा के श्रद्धागुण की निर्विकारी पर्याय है। अखण्ड आत्मा के लक्ष्य से सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। सम्यग्दर्शन को किसी विकल्प का अवलम्बन नहीं है, किन्तु निर्विकल्प स्वभाव के अवलम्बन से सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। यह सम्यग्दर्शन ही आत्मा के सर्व सुख का कारण है। मैं ज्ञानस्वरूप आत्मा हूँ, बन्धरहित हूँ' – ऐसा विकल्प करना सो, वह भी शुभराग है, उस शुभराग का अवलम्बन भी सम्यग्दर्शन के नहीं है। उस शुभविकल्प को उल्लंघन करने पर सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। सम्यग्दर्शन स्वयं राग और विकल्परहित निर्मल गुण है, उसे किसी विकार का अवलम्बन नहीं है, किन्तु समूचे आत्मा का अवलम्बन है, वह समूचे आत्मा को स्वीकार करता है। एक बार विकल्परहित होकर अखण्ड ज्ञायकस्वभाव को लक्ष्य में लिया कि सम्यक् प्रतीति हुई। अखण्ड स्वभाव का लक्ष्य ही स्वरूप की सिद्धि के लिये कार्यकारी है। अखण्ड सत्यस्वरूप को जाने बिना, श्रद्धा किये बिना 'मैं ज्ञानस्वरूप आत्मा हूँ, अबद्ध हूँ' इत्यादि विकल्प भी स्वरूप की शुद्धि के लिये कार्यकारी नहीं हैं। एक बार अखण्ड ज्ञायकस्वभाव का लक्ष्य करने के बाद जो वृत्तियाँ उठती हैं, वे वृत्तियाँ अस्थिरता का कार्य करती हैं, परन्तु वे स्वरूप को रोकने के लिये समर्थ नहीं हैं, क्योंकि श्रद्धा में तो वृत्ति Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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