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________________ www.vitragvani.com [159 सम्यग्दर्शन : भाग-1] निर्णय करना चाहिए। यह निर्णय होने पर अव्यक्तरूप में आत्मा का लक्ष्य हुआ, फिर पर के लक्ष्य और विकल्प से हटकर स्व का लक्ष्य प्रगटरूप में, अनुभवरूप में कैसे करना चाहिए? वह बताते हैं - आत्मा की प्रगट प्रसिद्धि के लिये इन्द्रिय और मन से जो परलक्ष्य होता है, उसे बदलकर मतिज्ञान को स्व में एकाग्र करते हुए आत्मा का लक्ष्य होता है; अर्थात्, आत्मा की प्रगटरूप में प्रसिद्धि होती है। आत्मा का प्रगटरूप में अनुभव होना ही सम्यग्दर्शन है और वही धर्म है। धर्म के लिए पहले क्या करना चाहिए? : प्रश्न - आत्मा के सम्बन्ध में कुछ समझ में न आये तो पुण्यरूप शुभभाव करना चाहिए या नहीं? उत्तर - पहले स्वभाव को समझना ही धर्म है, धर्म के द्वारा ही संसार का अन्त होता है; शुभभाव से धर्म नहीं होता और धर्म के बिना संसार का अन्त नहीं होता। धर्म तो अपना स्वभाव है; इसलिए पहले स्वभाव को समझना चाहिए। प्रश्न - स्वभाव समझ में न आये तो क्या करना चाहिए? समझने में देर लगे और एक-दो भव हो तो क्या अशुभभाव करके मर जाएँ? उत्तर - पहले तो रुचि से प्रयत्न करनेवाले को यह बात समझ में न आये – ऐसा हो ही नहीं सकता। समझने में विलम्ब हो तो वहाँ समझने के लक्ष्य से अशुभभाव को दूर करके, शुभभाव तो सहज होते हैं परन्तु यह जान लेना चाहिए कि शुभभाव से धर्म नहीं होता। जब तक किसी भी जड़ वस्तु की क्रिया और राग की क्रिया Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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