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________________ www.vitragvani.com 160] [ सम्यग्दर्शन : भाग-1 को जीव अपनी मानता है, तब तक वह यथार्थ समझ के मार्ग पर नहीं है I सुख का मार्ग सच्ची समझ और विकार का फल जड़ है: ·— I यदि आत्मा की सच्ची रुचि हो तो समझ का मार्ग लिए बिना न रहे । सत्य चाहिए हो, सुख चाहिए हो तो यही मार्ग है। समझ में भले विलम्ब हो जाए, किन्तु मार्ग तो सच्ची समझ का ही लेना चाहिए न ? सच्ची समझ का मार्ग ग्रहण करे तो सत्य समझ में आये बिना नहीं रहता है । यदि ऐसे मनुष्य अवतार में और सत्समागम के योग से भी सत्य नहीं समझे तो फिर सत्य समझने का ऐसा सुयोग मिलना दुर्लभ है। जिसे यह खबर नहीं है कि मैं कौन हूँ और यहीं स्वरूप को भूल जाता है, वह परभव में जहाँ जाएगा, वहाँ क्या करेगा? शान्ति कहाँ से लाएगा ? आत्मा की प्रतीति के बिना कदाचित् शुभभाव किये हों तो भी उस शुभ का फल जड़ में जाता है; आत्मा में पुण्य का फल नहीं आता । जिसने आत्मा की परवाह नहीं की और यहीं जो मूढ़ हो गया है, उसने यदि शुभभाव किए भी तो रजकणों का बन्ध हुआ और उन रजकणों के फल में भी उसे रजकणों का ही संयोग मिलेगा। रजकणों का संयोग मिला तो उसमें आत्मा के लिए क्या है ? आत्मा की शान्ति तो आत्मा में है, किन्तु उसकी परवाह तो की ही नहीं है । असाध्य (जीवितमुर्दा) कौन है और शुद्धात्मा कौन है ? : - जो जीव, यहीं जड़ के साथ एकत्वबुद्धि करके जड़ जैसा हो गया है, अपने को भूलकर संयोगदृष्टि से मरता है, असाध्यरूप वर्तता है; अर्थात्, जिसे चैतन्यस्वरूप का भान नहीं है, वह जीते Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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