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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
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नहीं हो सकता। इसलिए जिन्हें पूर्णानन्द प्रगट हुआ है - ऐसे सर्वज्ञ भगवान हैं। उनका, और वे क्या हैं? - इसका, जिज्ञासु को निर्णय करना चाहिए। इसलिए कहा है कि पहले श्रुतज्ञान के अवलम्बन से आत्मा का निर्णय करना चाहिए।
देखो! इसमें उपादान-निमित्त की सन्धि विद्यमान है। ज्ञानी कौन है ? सत्य बात कौन कहता है ? यह सब निश्चय करने के लिए निवृत्ति लेनी चाहिए। यदि स्त्री, कुटुम्ब, लक्ष्मी का प्रेम और संसार की रुचि में कमी न हो तो सत्समागम के लिए निवृत्ति नहीं ली जा सकती। जहाँ श्रुत का अवलम्बन लेने की बात कही गयी है, वहाँ तीव्र अशुभभाव के त्याग की बात तो सहज ही आ गयी है और सच्चे निमित्तों की पहिचान करने की बात भी आ गयी है। सुख का उपाय ज्ञान और सत्समागम है :
भाई! तुझे सुख चाहिए न? यदि सचमुच तुझे सुख चाहिए हो तो पहले यह निर्णय और ज्ञान कर कि सुख कहाँ है और वह कैसे प्रगट होता है ? सुख कहाँ है और कैसे प्रगट होता है ? - इसका ज्ञान हुए बिना प्रयत्न करते-करते सूख जाए तो भी सुख प्राप्त नहीं होता, धर्म नहीं होता। सर्वज्ञ भगवान के द्वारा कहे गये श्रुतज्ञान के अवलम्बन से यह निर्णय होता है और यह निर्णय करना ही प्रथम धर्म है। ___ जिसे धर्म प्राप्त करना हो, उसे धर्मी को पहचानकर, वे क्या कहते हैं ? - इसका निर्णय करने के लिए सत्समागम करना चाहिए। जिसे सत्समागम से श्रुतज्ञान का अवलम्बन हुआ कि अहो! पूर्ण आत्मवस्तु उत्कृष्ट महिमावान् है - ऐसा परम स्वरूप
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