SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [149 श्रुतज्ञान का अवलम्बन ही प्रथम किया है : जो आत्मकल्याण करने के लिए तैयार हुआ है - ऐसे जिज्ञासु को पहले क्या करना चाहिए? यह बताया जा रहा है। आत्मकल्याण अपने आप नहीं हो जाता, किन्तु अपने ज्ञान में रुचि और पुरुषार्थ से आत्मकल्याण होता है। अपना कल्याण करने के लिए, जिनके पूर्ण कल्याण प्रगट हुआ है, वे कौन हैं? वे क्या कहते हैं ? उन्होंने पहले क्या किया था? इसका अपने ज्ञान में निर्णय करना होगा; अर्थात्, सर्वज्ञ के स्वरूप को जानकर, उनके द्वारा कहे गये श्रुतज्ञान के अवलम्बन से अपने आत्मा का निर्णय करना चाहिए, यही प्रथम कर्तव्य है। किसी पर के अवलम्बन से धर्म प्रगट नहीं होता, तथापि जब स्वयं अपने पुरुषार्थ से समझता है, तब सामने निमित्त के रूप में सच्चे देव और गुरु ही होते हैं। इस प्रकार पहला निर्णय यही हुआ कि कोई पूर्ण पुरुष सम्पूर्ण सुखी है और सम्पूर्ण ज्ञाता है। वही पुरुष, पूर्ण सुख का पूर्ण सत्यमार्ग बतला सकता है। उसे स्वयं समझकर अपने पूर्ण सुख को प्रगट किया जा सकता है और जब स्वयं समझता है, तब सच्चे देव-शास्त्र-गुरु ही निमित्त होते हैं। जिसे स्त्री-पुत्र, पैसा इत्यादि की; अर्थात्, संसार के निमित्तों की तीव्र रुचि होगी, उसे धर्म के निमित्त, देव-शास्त्र-गुरु के प्रति रुचि नहीं होगी; अर्थात्, उसे श्रुतज्ञान का अवलम्बन नहीं होगा और श्रुतज्ञान के अवलम्बन के बिना आत्मा का निर्णय नहीं होता, क्योंकि आत्मा के निर्णय में सत् निमित्त ही होते हैं परन्तु कुगुरु-कुदेव-कुशास्त्र, आत्मा के निर्णय में निमित्तरूप नहीं हो सकते। जो कुदेवादि को मानता है, उसके आत्मनिर्णय हो ही नहीं सकता है। जिज्ञासु यह तो मानता ही नहीं Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy