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सबमें बड़े में बड़ा पाप, सबसे बड़े में बड़ा
पुण्य और सबमें पहले में पहला धर्म प्रश्न – जगत् में सबसे बड़ा पाप कौन-सा है ? उत्तर – मिथ्यात्व ही सबसे बड़ा पाप है। प्रश्न – सबसे बड़ा पुण्य कौन-सा है ?
उत्तर – तीर्थङ्कर नामकर्म सबसे बड़ा पुण्य है। यह पुण्य सम्यग्दर्शन के बाद की भूमिका में शुभराग के द्वारा बँधता है। मिथ्यादृष्टि को यह पुण्यलाभ नहीं होता।
प्रश्न – सर्व प्रथम धर्म कौन-सा है ?
उत्तर – सम्यग्दर्शन ही सर्व प्रथम धर्म है। सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान, चारित्र, तप इत्यादि कोई भी धर्म सच्चा नहीं होता। ये सब धर्म, सम्यग्दर्शन होने के बाद ही होते हैं; इसलिए सम्यग्दर्शन ही सर्व धर्म का मूल है।
प्रश्न – मिथ्यात्व को सबसे बड़ा पाप क्यों कहा है ?
उत्तर – मिथ्यात्व का अर्थ है –विपरीतमान्यता, अयथार्थ समझ। जो यह मानता है कि जीव, पर का कुछ कर सकता है और पुण्य से धर्म होता है, उसकी उस विपरीतमान्यता में प्रतिक्षण अनन्त पाप आते हैं। वह कैसे? सो कहते हैं -
जो यह मानता है कि पुण्य से धर्म होता है और जीव दूसरे का कुछ कर सकता है', (ऐसी मान्यतावाला जीव) यह मानता है कि
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