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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [125 जिस प्रकार किसी जीवित राजकुमार को – जिसका शरीर अति कोमल हो-जमेशदपुर-टाटानगर को अग्नि की भट्टी में झौंक दिया जाये तो उसे जो दुःख होगा, उससे अनन्तगुना दुःख पहले नरक में है और पहले की अपेक्षा दूसरे, तीसरे आदि सात नरकों में एक-एक से अनन्तगुना दुःख है – ऐसे अनन्त दुःखों की प्रतिकूलता की वेदना में पड़े हुए, घोर पाप करके वहाँ गए हुए, तीव्र वेदना के गंज में पड़े होने पर भी किसी समय कोई जीव ऐसा विचार कर सकते हैं कि अरे रे! ऐसी वेदना ! ऐसी पीड़ा! ऐसे विचार को बदलकर स्वसन्मुख वेग होने पर सम्यग्दर्शन हो जाता है। वहाँ सत्समागम नहीं है, परन्तु पूर्व में एक बार सत्समागम किया था, सत् का श्रवण किया था और वर्तमान सम्यक् विचार के बल से, सातवें नरक की महा तीव्र पीड़ा में पड़ा होने पर भी, पीड़ा का लक्ष्य चूककर सम्यग्दर्शन होता है, आत्मा का सच्चा वेदन होता है। सातवें नरक में पड़े हुए सम्यग्दर्शन प्राप्त जीव को वह नरक की पीड़ा असर नहीं कर सकती, क्योंकि उसे भान है कि मेरे ज्ञानस्वरूप चैतन्य को कोई परपदार्थ असर नहीं कर सकता। ऐसी अनन्ती वेदना में पड़े हुए भी आत्मानुभव को प्राप्त हुए हैं, तब फिर सातवें नरक जितना कष्ट तो यहाँ नहीं है न? मनुष्यपना पाकर रोना क्या रोता रहता है ? अब सत्समागम से आत्मा की पहिचान करके आत्मानुभव कर! आत्मानुभव का ऐसा माहात्म्य है कि परीषह आने पर भी न डिगे और दो घड़ी स्वरूप में लीन हो तो पूर्ण केवलज्ञान प्रगट करे! जीवन्मुक्तदशा हो – मोक्षदशा हो। तब फिर मिथ्यात्व का नाश करके सम्यग्दर्शन प्रगट करना तो सुगम है। (-समयसार प्रवचन भाग-3) Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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