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________________ www.vitragvani.com 110] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 पहले अरहन्त का निर्णय करके, द्रव्य-गुण-पर्याय के स्वरूप को जाने कि ऐसी पर्याय मेरा स्वरूप है, ऐसे मेरे गुण हैं और मैं अरहन्त जैसा ही आत्मा हूँ। इस प्रकार विकल्प के द्वारा जानने के बाद, पर्याय के अनेक भेद का लक्ष्य छोड़कर 'मैं ज्ञानस्वरूप आत्मा हूँ'- इस प्रकार गुण-गुणी भेद के द्वारा आत्मा को लक्ष्य में ले; और फिर द्रव्य, गुण अथवा पर्याय सम्बन्धी विकल्पों को छोड़कर, मात्र आत्मा का अनुभव करने के समय वह गुण-गुणी भेद भी गुप्त हो जाता है, अर्थात् ज्ञानगुण आत्मा में ही समाविष्ट हो जाता है; इस प्रकार केवल आत्मा का अनुभव करना, वह सम्यग्दर्शन है। ___ "हार को खरीदनेवाला आदमी, खरीदते समय हार तथा उसकी सफेदी और उसके मोती इत्यादि सबकी परीक्षा करता है, परन्तु बाद में सफेदी और मोतियों को हार में समाविष्ट करके उनके ऊपर का लक्ष छोड़कर केवल हार को ही जानता है। यदि ऐसा न करे तो हार को पहिनने की स्थिति में भी सफेदी इत्यादि के विकल्प रहने से वह हार को पहिनने के सुख का संवेदन नहीं कर सकेगा।" (गुजराती-प्रवचनसार, पृष्ठ 119 फुटनोट) इसी प्रकार आत्मस्वरूप को समझनेवाला, समझते समय तो द्रव्य, गुण, पर्याय - इन तीनों के स्वरूप का विचार करता है, परन्तु बाद में गुण और पर्याय को द्रव्य में ही समाविष्ट करके, उनके ऊपर का लक्ष्य छोड़कर मात्र आत्मा को ही जानता है। यदि ऐसा न करे तो द्रव्य का स्वरूप ख्याल में आने पर भी, गुण-पर्याय सम्बन्धी विकल्प रहने से द्रव्य का अनुभव नहीं कर सकेगा। हार आत्मा है, सफेदी गुण है और मोती पर्याय हैं। इस प्रकार दृष्टान्त और सिद्धान्त का सम्बन्ध समझना चाहिए। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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