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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [101 -सम्यक्त्वसन्मुख दशाजिसने अपने ज्ञान के द्वारा अरहन्त के द्रव्य-गुण-पर्याय को लक्ष्य में लिया है, उस जीव को अरहन्त का विचार करने पर, परमार्थ से अपना ही विचार आता है। अरहन्त के द्रव्य-गुण पूर्ण हैं और उनकी अवस्था सम्पूर्ण ज्ञानमय है, सम्पूर्ण विकार रहित है; ऐसा निर्णय करने पर यह प्रतीति होती है कि अपने द्रव्य-गुण पूर्ण हैं और उनकी अवस्था सम्पूर्ण ज्ञानरूप, विकाररहित होनी चाहिए। जैसे भगवान अरहन्त हैं, वैसा ही मैं हूँ; इस प्रकार अरहन्त को जानने पर, स्वसमय को मन के द्वारा जीव जान लेता है। यहाँ तक अभी अरहन्त के स्वरूप के साथ अपने स्वरूप की समानता करता है, अर्थात् अरहन्त के लक्ष्य से अपने आत्मा के स्वरूप का निश्चय करना प्रारम्भ करता है । यहाँ पर लक्ष्य से निर्णय होने के कारण यह कहा है कि मन के द्वारा अपने आत्मा को जान लेता है। यद्यपि यहाँ विकल्प है; तथापि विकल्प के द्वारा जो निर्णय कर लिया है, उस निर्णयरूप ज्ञान में से ही मोक्षमार्ग का प्रारम्भ होता है। मन के द्वारा विकल्प से ज्ञान किया है; तथापि निर्णय के बल से ज्ञान में से विकल्प को अलग करके स्वलक्ष्य से ठीक समझकर मोह का क्षय अवश्य करेगा – ऐसी शैली है। जिसने मन के द्वारा आत्मा का निर्णय किया है, उसकी सम्यक्त्व के सन्मुख दशा हो चुकी है। -अरहन्त के साथ समानताअब यह बतलाते हैं कि अरहन्त को द्रव्य-गुण-पर्याय से Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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