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Verse 40
शिवमजरमरुजमक्षयमव्याबाधं विशोकभयशङ्कम् । काष्ठागतसुखविद्याविभवं विमलं भजन्ति दर्शनशरणाः ॥ ४० ॥
सामान्यार्थ - सम्यग्दृष्टि जीव वृद्धावस्था से रहित, रोग-रहित, क्षय-रहित, विशिष्ट अथवा विविध बाधाओं से रहित, शोक, भय तथा शंका से रहित, सर्वोत्कृष्ट सुख और ज्ञान के वैभव से सहित तथा कर्म-मल से रहित, मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
Persons with right faith attain to the supreme state of liberation (mokşa) which is free from old-age, disease, decay, impediments of all kinds, grief, fear, and doubt, and characterized by supreme bliss and knowledge as the soul becomes pristine on the destruction of all karmas.
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