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Ratnakarandaka-śrāvakācāra
अमरासुरनरपतिभिर्यमधरपतिभिश्च नूतपादाम्भोजाः । दृष्ट्या सुनिश्चितार्था वृषचक्रधरा भवन्ति लोकशरण्याः ॥ ३९ ॥
सामान्यार्थ - सम्यग्दर्शन के माहात्म्य से देवेन्द्र, धरणेन्द्र और चक्रवर्ती से और मुनियों के स्वामी गणधरों के द्वारा जिनके चरणकमलों की स्तुति की जाती है, जिन्होंने पदार्थ का अच्छी तरह निश्चय किया है तथा जो तीनों लोकों के लोगों को शरण देने में निपुण हैं, ऐसे धर्मचक्र के धारक तीर्थंकर होते हैं।
It is due to the magnificence of right faith that one attains the status of the Tīrthankara whose majestic procession is led by the divine wheel of dharma (dharmacakra), whose Lotus Feet are worshipped by the lords of the heavenly devas – devendra, of the residential devas - dharmendra, of the men - cakravarti, and of the holy ascetics - gañadhara, and, having well ascertained the nature of Reality, He (the Tīrthankara) is the most worthy protector of the living beings in the three worlds.
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