________________
Ratnakarandaka-śrāvakācāra
सम्यग्दर्शनशुद्धा नारकतिर्यनपुंसकस्त्रीत्वानि । दुष्कुलविकृताल्पायुर्दरिद्रतां च व्रजन्ति नाप्यव्रतिकाः ॥ ३५ ॥
सामान्यार्थ - सम्यग्दर्शन से शुद्ध जीव व्रत रहित होने पर भी नारक, तिर्यञ्च, नपुंसक और स्त्रीपने को और नीच-कुल, विकलांग अवस्था, अल्पायु और दरिद्रता को प्राप्त नहीं होते हैं।
Persons with right faith, even if without vows, are not reborn as infernal beings, as plants and animals, and in neuter or feminine genders; they are also not reborn in low caste, as cripples, with short lifetime, and in a state of poverty.
........................ 56