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Verse 34
न सम्यक्त्वसमं किञ्चित्काल्ये त्रिजगत्यपि । श्रेयोऽश्रेयश्च मिथ्यात्वसमं नान्यत्तनूभृताम् ॥ ३४ ॥
सामान्यार्थ - प्राणियों के तीनों कालों में और तीनों लोकों में भी सम्यग्दर्शन के समान कल्याण-रूप, और मिथ्यादर्शन के समान अकल्याण-रूप दूसरा कोई नहीं है।
For the living beings there is nothing in the three worlds and the three times that brings about more propitiousness than right faith; there is nothing that brings about more unpropitiousness than wrong faith.
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