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Verse 36
ओजेस्तेजोविद्यावीर्य्ययशोवृद्धिविजयविभवसनाथाः । माहाकुला महार्था मानवतिलका भवन्ति दर्शनपूताः ॥ ३६ ॥
सामान्यार्थ - सम्यग्दर्शन से पवित्र जीव उत्साह, प्रताप-कान्ति, विद्या, बल-पराक्रम, यश-कीर्ति, वृद्धि-उन्नति, विजय और वैभव-सम्पत्ति के स्वामी, उच्चकुलोत्पन्न और (धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप) पुरुषार्थ से सहित, मनुष्यों में श्रेष्ठ होते हैं।
Persons whose souls are purified with right faith are endowed with vigour, lustre, learning, strength, glory and renown, growth and advancement, success, grandeur, high caste, and right human-effort [for the sake of righteousness (dharma), wealth (artha), enjoyment (kāma), and liberation (mokşa)]. They are the best of human beings.
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