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Ratnakarandaka-śrāvakācāra
परमेष्ठी परंज्योतिर्विरागो विमलः कृती । सर्वज्ञोऽनादिमध्यान्तः सार्वः शास्तोपलाल्यते ॥ ७ ॥
सामान्यार्थ - वह आप्त - परमेष्ठी (इन्द्रादिक के द्वारा वन्दनीय परमपद में स्थित), परंज्योति (केवलज्ञान ज्योति से सहित), विराग (राग-रूप भावकर्म से रहित), विमल (मूलोत्तर प्रकृतिरूप द्रव्यकर्म के नष्ट हो जाने से मल रहित), कृती (समस्त हेय-उपादेय तत्त्वों के विषय में विवेक-संपन्न अर्थात् कृतकृत्य, सर्वज्ञ (समस्त पदार्थों के साक्षात्कारी होने से), अनादिमध्यान्त (आप्त के प्रवाह की अपेक्षा से आदि, मध्य तथा अन्त से रहित), सार्व (सभी प्राणियों का उपकार करने वाले मार्ग को दिखलाने के कारण), और शास्ता (पूर्वापर-विरोध आदि दोषों को बचाकर समस्त पदार्थों का यथार्थ उपदेश देने से) - इन शब्दों के द्वारा कहा जाता है, अर्थात् ये सब आप्त के नाम हैं।
The Supreme Teacher (Apta) is known by these attributes: parameșthi - he is worshipped by the lords of the devas, paramjyoti – is endowed with the divine light of omniscience, virāga – is free from all kinds of desires, vimala – is stainless, having washed off karmic impurities, krta-krtya – is contented, having attained the highest goal, sarvajna - is all-knowing, anādimadhyānta - is without beginning, middle or end (in terms of eternal existence of such a Supreme Teacher), sārva - is a benefactor for all living beings, and śāstā – is the most trustworthy preacher of Reality.
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