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क्षुत्पिपासाजरातङ्कजन्मान्तकभयस्मयाः ।
न रागद्वेषमोहाश्च यस्याप्तः सः प्रकीर्त्यते ॥ ६ ॥
Verse 6
सामान्यार्थ - जिसके भूख, प्यास, बूढ़ापा, रोग, जन्म, मरण, भय, स्मय-मद, राग, द्वेष, मोह और चिंता, अरति, निद्रा, विस्मय, विषाद - शोक, स्वेद और खेद - ये अठारह दोष नहीं हैं वह आप्त अर्थात् सच्चा देव कहा जाता है।
The one who is free from these eighteen imperfections - hunger (kşudhā), thirst (trsā), old-age (żarā), sickness (roga), (re ) birth (janma), death (marana), fear (bhaya), pride (mada), attachment (rāga), aversion (dvesa), delusion (moha), anxiety (cintā), displeasure (arati ), sleep ( nidrā), astonishment (vismaya), despondency or grief (visāda or śoka), perspiration (sveda), and regret (kheda) - is called the real (trustworthy) sectfounder (āpta).
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