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Ratnakarandaka-śrāvakācāra आप्तेनोच्छिन्नदोषेण* सर्वज्ञेनागमेशिना । भवितव्यं नियोगेन नान्यथा ह्याप्तता भवेत् ॥ ५ ॥
सामान्यार्थ - नियम से आप्त को दोषरहित-वीतराग, सर्वज्ञ, और आगम का स्वामी (हेय और उपादेय तत्त्वों का ज्ञान कराने वाले आगम का मूल प्रतिपादक) होना चाहिये क्योंकि अन्य प्रकार से आप्तपना नहीं हो सकता है।
As a rule, the sect-founder or deity (āpta) must be free from imperfections, all-knowing or omniscient, and his teachings should become the basis of the (holy) scripture; without these attributes the trustworthiness of a sect-founder cannot be established.
* पाठान्तर : आप्तेनोत्सन्नदोषेण
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