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अनात्मार्थं विना रागैः शास्ता शास्ति सतो हितम् । ध्वनन् शिल्पिकरस्पर्शान्मुरजः किमपेक्षते ॥ ८ ॥
Verse 8
सामान्यार्थ आप्त भगवान् राग के बिना, अपना प्रयोजन न होने पर भी, समीचीन-भव्यजीवों को हित का उपदेश देते हैं क्योंकि बजाने वाले के हाथ के स्पर्श से शब्द करता हुआ मुरज (मृदंग ) क्या अपेक्षा रखता है? अर्थात् कुछ भी नहीं।
The World Teacher (Apta) is free from attachment and, therefore, delivers His discourse without self-interest for the well-being of the worthy (bhavya) souls; what does the drum (mṛdañga) long for as it makes sound on the touch of the drummer's hand?
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