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Verse 39
When the effect (kārya) has eternal existence (sat), the idea of a produced entity is untenable:
यदि सत्सर्वथा कार्यं पुंवन्नोत्पत्तुमर्हति । परिणामप्रक्लृप्तिश्च नित्यत्वैकान्तबाधिनी ॥३९॥
सामान्यार्थ - यदि कार्य को सर्वथा सत् माना जाए तो चैतन्य पुरुष के समान उसकी उत्पत्ति नहीं हो सकती है। और उत्पत्ति न मानकर कार्य में परिणाम की कल्पना करना नित्यत्वैकान्त की बाधक है।
If the effect (kārya) be considered as having eternal existence (sat), like the intelligent Purușa of the Sāmkhya philosophy, it cannot be a produced entity. And to imagine the process of transformation in an entity which cannot be produced goes against the doctrine of 'eternal existence'.
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