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________________ आचार्य समन्तभद्र प्रणीत आप्तमीमांसा का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद एवं विवेचन करके धर्मानुरागी श्री विजय कुमार जी ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इससे सम्पूर्ण विश्व को आचार्य समन्तभद्र के अनुपम वचनों को समझने का सौभाग्य प्राप्त होगा। नवम्बर 2015, नई दिल्ली आचार्य 108 श्री विद्यानन्द मुनि __ श्री विजय कुमार जैन आध्यात्मिक तथा अन्य शास्त्रों में निहित पूर्वाचार्यों द्वारा हमें प्रदत्त श्रुतज्ञान को अपना तन-मन-धन समर्पित करते हुए सेवा-भाव से प्रसारित करने में निरंतर संलग्न हैं। यह उनके भव्य जीव होने का तथा पूर्व जन्म के पुण्य-प्रताप का ही फल है। __ उनको मेरा आशीर्वाद है कि वे ऐसे ही निरंतर जिनवाणी माता की सेवा में अपना योगदान करते रहें। मैं आन्तरिक भावना से उनको व उनके समस्त परिवार को शुभाशीर्वाद देता हूँ। ऐसे भव्य जीवों के द्वारा ही जिनशासन इस कलिकाल में भी सुरक्षित और जयवन्त है। दिसम्बर 2015, हस्तिनापुर आचार्य 108 श्री निःशंकभूषण मुनि ISBN 81-903639-8-0 Rs.: 500/ विकल्प Vikalp Printers
SR No.007744
Book TitleAptamimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay K Jain
PublisherVikalp Printers
Publication Year2016
Total Pages227
LanguageEnglish, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size6 MB
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