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Āptamīmāṁsā
Fault in accepting that the accomplishment of objects is due only to human-effort:
पौरुषादेव सिद्धिश्चेत् पौरुषं दैवतः कथम् । पौरुषाच्चेदमोघं स्यात् सर्वप्राणिषु पौरुषम् ॥८९॥
सामान्यार्थ - यदि पौरुष से ही सब अर्थ (प्रयोजन-रूप कार्य) की सिद्धि का एकान्त माना जाए तो पौरुष-रूप कार्य की सिद्धि कैसे होती है? यदि उसकी दैव से सिद्धि होती है तो ऐसा मानने पर उक्त एकान्त का विरोध होता है। और यदि पौरुष से ही पौरुष की सिद्धि मानी जाए तो सब प्राणियों का पौरुष अमोघ (निष्फल न होना) ठहरेगा (जो प्रत्यक्ष के विरुद्ध है)।
If the accomplishment of objects (artha) is due only to humaneffort (paurusa) then how could fate (daiva) be responsible for the creation of human-effort? If it be assumed that only humaneffort is responsible for the creation of human-effort, then all human-effort for the accomplishment of objects should always be successful.
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