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________________ प्रस्तावना. सर्वे सिद्धान्तशिरोमणि वेदान्तसिद्धान्तही मुमुक्षुको उपादेय है । इसके ज्ञानार्थ सूत्र भाष्य आदि अनेक संस्कृत ग्रन्थ होनेपरभी उनमें संस्कृतानभिज्ञ साधारण पुरुषोंकी प्रवृत्ति अशक्य समझकर परम दयाल साधु श्रीअनाथदासजीने इस ग्रन्थके अष्टम विनामके ४० वें दोहेके लेखानुसार अपने मित्र श्रीनरोत्तमपुरीजीकी सूचनासे यह " श्रीविचारमाला" नामकर११ दोहावद्ध भाषाग्रन्थ वनाया. इसमें सर्व वेदान्त प्रन्योंका गूढ रहस्य प्रतिपादित है. इसकी कविता उत्कृष्ट है और यह वेदान्तविषयक भाषाग्रन्थों में सर्वोत्तम तथा प्रथम है, क्योंकि आजसे २४१ वर्ष पहले यह लिखा गया है. इस ग्रन्थका प्रतिपाद्य विषय इतना गहन और सूक्ष्म है कि टीका विना हृदयंगम होना अतिकठिन है. इसपर एक सुविस्तृत संस्कृतटीका तथा ८००० आठ हजार श्लोक भापाटीका है. उक्त दोनों टीका मन्दप्रज्ञ पुरुपोंके लिये अनुपयुक्त जानकर असाधारण प्रतिभाशाली दादूपंथी श्रीगोविन्द दासजीने वावा वनखंडीके शिष्य श्रीहरिमसादजीकी इच्छासे यह " बालबोधिनी " नामक टीका रची. यह टीका सुगम रूपसे इस ग्रन्थका आशय खोलनेवाली होनेके कारण सर्व साधारण मुमुक्षुओंको अत्युपयोगी जान "पं. हरिप्रसाद भगीरथजी मा. पु. " के अध्यक्ष श्रीमान् पं. " व्रजवल्लभ हरिप्रसादजी " ने शास्त्री रघुवंशशर्मा द्वारा शोधन कराके छपाया, आशा है कि विचारशील पाठक इसका अभ्यास कर दृष्टि दोषोंको क्षमा करतेहुए इस परिश्रमको सफल करेंगे. शोधक.
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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