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ढकोमालिकहोइरह्यो ॥ २७ ॥ मनोहरछंद ॥ करतरामा - न एकदेहअभिमानऐसो आपमाहिंआपै आपफूल्योही फिरत है || नाहिवपुतीन तेरेचेतन स्वरूप शुद्धगीतागुरुवेदवाक्यसा षजो भरत है ॥ साररूअसारहिकौकरिलेविचार आपदेहको हुंमानि मुढकाहेको मरत है || जानोहरिसंगस तगुरुगम भयो तब चौरासी के फंदडुमें कबून परतहै ॥ २८ ॥ दोहा || हर्षशोकमनकोगयो || शांतभयो है चित्त ॥ सद्गुरु रामप्रसादतें || जान्यो नित्यानित्य ॥ २९ ॥ नित्यानि - त्यविवेकसे || भईअविद्यानाश || हर्षशोकतेरहितजो ॥ सोहं ब्रह्मप्रकाश ॥ ३० ॥ आपप्रकाशअखंडहों ॥ सतचिदआनंदरूप || हरीसंगमनतेपरे || सोत्रा अनूप ॥ ३१ ॥ ज्ञानकटारीग्रंथयह || सूक्षमकह्योजुभाइ ॥ शुद्धमुमुक्षूपरसदा अज्ञतज्ञपरनाइ ॥ ३२ ॥ उन्नीससेछेमेवरष ॥ भयो सुपुरणजान ॥ मृगसिरमासरुशुक्कतिथि ॥ नवमीअरुभृगुमान ॥ ३३ ॥ इति श्रीरामगुरुशिष्यहरिसंगकृतज्ञानकटारीग्रंथ संपूर्ण ||
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