________________
१.५०
विचारमाला. :
वि०८+
नहीं | तैसे ज्ञानवान्भी सेवा करनेवालेको औ पीड़ा कर्त्ता को अपने अवयव जाने हैं; याते तृप्त कुपित होवे. नहीं । अथवा आपनपो लहै, याका यह अर्थ है:ज्ञानवान् सुख दुःख अपने पूर्वकृतका फल जाने है, . याते तृप्तः कुपित होवै नहीं । सो कहा है अध्यात्ममें:- अपने पूर्वले इकत्र करे कर्महीं सुख दुःखके कारण हैं ॥ ११ ॥
ननु अध्यात्मादि तीन तापको निवृत्ति अर्थ विद्वानकी प्रवृत्ति संभव है ? वहां सुनो:दोहा -शांतरूप तिनको जगत, जे उर शांत महंत ॥ त्रिविध ताप निजउर जरत, ते जग जरत लहंत ॥ १२ ॥
A
टीका:-- अज्ञानके सद्भावते अध्यात्मादि तीन तापोंकर जिनके चित्त तपायमान हैं ते अज्ञ पुरुष सर्व जगतको तपायमान देखे हैं, तिनकी ही तापोंकी निवॄत्ति अर्थ प्रवृत्ति संभवे है, औ जो महानुभाव अज्ञानकी