________________
विचारमाला... : : वि. १.. वपु रहितप्रछेद ॥ विद्याप्रद गुरु तिहिनमो,जिह प्रसाद गत खेद ॥३॥ गुरु जुग पंच मनाइके यिह धरनिज उपकार। विचारमाल टीकारचूं, बालबोधिनी सार॥४॥
(२) ननु-टीका करणे लगे तो टीकाका लक्षण कहा चाहिये; काहेत लक्षणअरु प्रमाणकर वस्तुकी सिद्धि होवै है? तहां सुनोः-वाक्यके पद भिन्नभिन्न कहणे, औ पदोंके अर्थ कहणे, औव्याकरणके अनुसार पदोंकी व्युत्पत्ति करणी, औ वाक्यके पदोंका अन्वय (संबंध ) करणा,
औ वाक्यके अर्थमैं शंका होवै ताका समाधान करणा: इन पंचलक्षणवाली टीका कहिये है। अब ग्रंथके आरंभमें करणीय जो मंगल तिसके प्रयोजन कहै हैं; काहेत? प्रयोजन विना मंदभी प्रवृत्त होवै नहीं:-ग्रंथकीः निर्विन समाप्ति औ श्रेष्ठाचार औ ग्रंथकर्तामै नास्तिकभ्रांति
की निवृत्ति इत्यादिक मंगलके प्रयोजन हैं. सो मंगल : वस्तुनिर्देशरूप औ आशीर्वादरूप औ नमस्काररूप मेंदत त्रिधा है । सगुण वा. निर्गुण परमात्मा वस्तु