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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
'आवस्सिआए' सूत्रका उपयोग वांदणामें एक बार होता है । पहेले वांदणामें 'निसीहि' कहकर प्रवेश करनेके बाद 'आवस्सिआए' कह कर गुरु भगवंतके अवग्रहसे बहार नीकलना होता है । दूसरी बार के वांदणामें अवग्रहमें प्रवेश करनेकी सहमति लेनेके बाद, फिरसे गुरु वांदणा न करनेका होने के बाद अवग्रहसे बहार नीकलना रहता है ।
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'अवग्रह' - पूज्य गुरुभगवंत और अपने बीच के अंतरको अवग्रह कहते है। गुरुभगवंतकी आज्ञा बिना उनके अवग्रहमें प्रवेश करना अविनय है। वांदणामें आज्ञा पाकर दो बार प्रवेश होता है ।
अवग्रहमें प्रवेश करनके बाद यथाजात मुद्रामें बैठे ।
मुहपत्ति/चरवला पर गुरुचरणकी स्थापना करे |
(प्रतिक्रमण शरु करनेसे पहले रात्रिके पच्चक्खाण करना है।
इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पच्चकख्खाणनो आदेश देशोजी (१)
हे भगवन् ! कृपा
करी
पच्चक्खाणका आदेश दीजीयेजी
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संध्या समयके पच्चक्खाण
पाणहार पच्चक्खाण सूत्र अर्थ सहित पाणहार दिवस - चरिमं पच्चखाइ (पच्चक्खामि )
(१)
अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ (वोसिरामि) ।
अर्थ - दिनके शेष भागसे संपूर्ण रात्रि-पर्यंत पानीका पच्चक्खाण करता है (करता हुं) । उसका अनाभोग (इस्तेमाल किये बिना विस्मृति हो जाने से किसी चीज को मुख में डाला जाये वह), सहसात्कार (अपने आप ही अचानक मुख में कोई चीज प्रवेश