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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
सव्वकालिआए, सव्वमिच्छो वयाराए,
सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ, तस्स खमासमणो ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि (७)
हे क्षमाश्रमण ! ( अन्य व्यापारो का त्याग करके, शक्ति के अनुसार, मैं वंदन करना चाहता हूँ । मुझे अवग्रह में प्रवेश करने के लिये आज्ञा प्रदान करो ।
अशुभ व्यापार को त्याग करके, आपके चरणों को मेरी काया (मेरे हाथ) द्वारा स्पर्श करने से हुए खेद के लिए आप क्षमा करें । आपका दिन अल्प ग्लानि और अधिक सुख पूर्वक व्यतीत हुआ है ? आपकी (संयम) यात्रा (ठीक चल रही है ) ? आपका मन और इंद्रियाँ पीड़ारहित है ? हे क्षमाश्रमण ! दिन भरमें हुए अपराधों की मैं क्षमा मांगता हूँ ।
आवश्यक क्रिया के लिये ( मैं अवग्रह से बाहर जाता हूँ) । दिनभरमें क्षमाश्रमण के प्रति तैंतीसमें से अन्य जो कोई भी आशातना की हो (उसका ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। जो कोई मिथ्या भाव द्वारा, मन, वचन या काया के दुष्कृत्य द्वारा; क्रोध, मान, माया या लोभ से; सर्व काल में, सर्व प्रकार के मिथ्या उपचारों से या सर्व प्रकार के धर्म अतिक्रमण से हुए आशातना द्वारा मुझसे जो कोई अतिचार हुआ हो, हे क्षमाश्रमण ! उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, निंदा करता हूँ, गर्हा करता हूँ एवं (अशुभ प्रवृत्तियों वाली) आत्मा का त्याग करता हूँ ।