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श्री संवत्सरी प्रतिक्रमण विधि सहित
(जिनके पास चरवला है वे 'करेमि भंते ' सूत्र खडे रहकर बोले । )
सामायिक महासूत्र
करेमि भंते ! सामाइयं ! सावज्जं जोगं पच्चक्खामि । जाव नियमं पज्जुवासामि, दुविहं, तिविहेणं, मणेणं, वायाए,
काएणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ।
(१)
हे भगवंत ! मैं सामायिक करता हूं । प्रतिज्ञाबद्धत्तासे पापवाली प्रवृत्ति का त्याग करता हूं । ( अतः) जब तक मैं (दो घडी के) नियम का सेवन करूं, (तब तक ) त्रिविधि से द्विविध (यानी ) मनसे, वचन से, काया से, (सावद्य प्रवृत्ति) न करूंगा, न कराऊंगा । हे भगवंत ! (अब तक किये) सावद्य का प्रतिक्रमण करता हूं, (गुरु समक्ष) गर्हा करता हूं, (स्वयं ही) निंदा करता हूँ, (ऐसी सावद्य-भाववाली) आत्मा का त्याग करता हूं । (१)
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३१
‘करेमि भंते' सूत्र सामायिक ग्रहण करनेकी महाप्रतिज्ञा है । सावद्य योगका मन-वचन-कायापूर्व करवाने का पच्चक्खाण है । और सावद्य योग संबंधी प्रतिक्रमण, निंदा, गर्हापूर्वक आत्माको वोसिराने का कथन है ।
देव-गुरुको पंचांग वंदन
इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जा निसीहियाए, मत्थएण वंदामि (९)