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गुरुवंदन विधि सहित
देव-गुरुको पंचांग वंदन इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, 2 मत्थएण वंदामि (१) मैं इच्छता हूं हे क्षमाश्रमण ! वंदन करने के लिए, सब शक्ति लगाकर व दोष त्याग कर मस्तक नमाकर मैं वंदन करता हूं | (१)
(इस प्रकार दो बार खमासमण दे, और गुरुके समक्ष हाथ जोडकर खडे होकर ये सूत्र बोले) इच्छकार ! सुहराइ ? (सुहदेवसि ?)
(सुबह 'राई' बोले और दोपहर 'देवसि' बोले)
सुखतप ? शरीर निराबाध ?
सुख-संजम-जात्रा निर्वहो छो जी ? स्वामी ! शाता छे जी ? भात-पाणीनो लाभ देजो जी हे गुरु महाराज ! (आपकी) इच्छा हो तो पूर्छ...आपका दिन(रात्रि) सुखपूर्वक पसार हुआ ? सुखपूर्वक तपश्चर्या हुई ? शरीरसे रोगरहित अवस्थामें हो ? सुखशातापूर्वक संयमकी यात्रामें प्रवर्ते हो ? हे स्वामी! आप शातामें हो ? (मुझे भातपानीका लाभ दीजीए) | (१)
(पदस्थ होय तो एक खमासमण और बार दे)
श्री गुरुभगवंत के पास अपराधोकी क्षमा मांगना इच्छा कारेण संदिसह भगवन् !
अब्भुट्ठिओमि, अभिंतर देवसिअं खामेउं ? इच्छं,